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Showing posts from April, 2020

Ramzan Hadees 8 | रमजान हदीस ८

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 नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है की जो शख्श (क़सदन) बिला किसी शरई उज्र के एक दिन भी रमजान के रोजे को इफ्तार करदे गैर रमजान का रोजा चाहे तमाम उम्र के रोजे रखे इसका बदल नहीं हो सकता | फ - बाज उलमा का मजहब जिनमे हजरत अली कर्रमल्लाहु वज्हहू वगैर हजरात भी है, इस हदीस की बिना पर यह है की जिस ने रमजानुल मुबारक के रोजे को बिला वजह खो दिया, उसकी क़ज़ा हो ही नहीं सकती, चाहे उम्र भर रोजे रखता रहे | मगर जम्हूर फुकहा के नजदीक अगर रमजान का रोजा रखा ही नहीं तो एक रोजे के बदले एक रोजे से क़ज़ा हो जाएगी और अगर रोजा रख कर'तोड़ दिया तो क़ज़ा के एक रोजे के अलावा दो महीने के रोजे कफ़्फ़ारे के अदा करने से फर्ज जिम्मे से साकित हो जाता है, अलबत्ता वह बरकत और फजीलत जो रमजानुल मुबारक की है, हाथ नहीं आ सकती जो रमजान शरीफ में रोजा रखने से हासिल होती, यह सब कुछ इस हालत में है की बाद में क़ज़ा भी करे और अगर सिरे से रखे ही नहीं जैसा की इस जमाने के बाज नाफरमान लोगो की हालत है तो इस गुमराही का क्या पूछना ? रोजा अरकाने इस्लाम से एक रुक्न है | नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस्लाम की बुनियाद पांच ची

Ramzan Hadees 7 | रमजान हदीस ७

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हुजूर  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है की रोजा आदमी के लिए ढाल है,जब तक उस को फाड़ न डाले | फ़ - ढाल होने का मतलब यह है की जैसे आदमी ढाल से अपनी हिफाजत करता है उसी तरह रोजे से भी अपने दुश्मन यानी शैतान से हिफाजत होती है | एक रिवायत में आया है की रोजा हिफाजत है अल्लाह के अजाब से, दूसरी रिवायत में है की रोजा जहन्नम से हिफाजत है | एक रिवायत में वारिद हुवा है की किसी ने अर्ज किया, या रसूलल्लाह ! रोजा किस चीज से फट जाता है ? हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फर्माया की झूठ और ग़ीबत | संदर्भ :- फजाइल ए आमाल Abu Ubaidah (Radiallahu Anhu) reports: I have heard Rasulallah (SAW) saying: Fasting is a protective shield for Man, as long as he does not tear up that protection. Commentary - "Protective Shield" here means just as a man protects himself  with a shield, similarly fasting protects him from his well-known enemy "Shaitan". In other Ahadith, we are told that fasting saves one from Allah's punishment and Hellfire in the hereafter. Once somebody inqui

Ramzan Hadees 6 | रमजान हदीस ६

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हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है की बहुत से रोजा रखने वाले ऐसे है की इनको रोजे के समरात में भूखा रहने के आलावा कुछ भी हासिल नहीं और बहुत से शब् बेदार ऐसे है की इनको रात के जागने ( की  मशक्कत ) के सिवा कुछ भी न मिला | Abu, Hurayra (RA) relates that Rasulullah (SAW) said: Many of those who fast obtain nothing through such fasting except hunger, and many a one performs "Salaat" by night but obtains nothing by it, except the discomfort of staying awake. Reference:- फजाईले आमाल

Ramzan Hadees 5 | रमजान हदीस ५

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हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है की खुद हक़ तआलाशानुहु और उसके फ़रिश्ते सहरी खाने वालो पर रहमत नाजिल फर्माते है | Ibn Umar (Radhi Allaho anho) relates: Rasulullah (SAW) said: Verify Allah and his Malaa'ikah send Mercy upon those who eat 'Sehri' (sower-Suhoor). Reference:- फजाईले आमाल

Ramzan Hadees 4 | रमजान हदीस ४ ( तीन आदमियों की दुआ रद्द नहीं होती )

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हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है की तीन आदमियों की दुआ रद्द नहीं होती |  एक रोजेदार की इफ्तार के वक्त, दूसरे आदिल - बादशाह की दुआ, तीसरे मजलूम की, जिसको हक़ तआला शानुहु बादलो  उठा लेते है और आसमान के दरवाजे उसके लिए खोल दिए जाते है, और इर्शाद होता है की में तेरी जरूर मदद करुंगा, गो  (किसी  मसलहत से ) कुछ देर हो जाए | Reference:-  फजाईले आमाल

Ramzan Hadees 3 | रमजान हदीस ३

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नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है की रमजानुल मुबारक की हर शब व रोज में अल्लाह के यहां से जहन्नम के कैदी छोड़े जाते है और हर मुसलमान के लिए हर शब व रोज में एक दुआ जरूर कुबूल होती है | Reference:- फजाईले आमाल

Ramzan Hadees 2 | रमजान हदीस २

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हजरत उबादा बिनिस्सामित  (रजि ) कहते है की एक मर्तबा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रमजानुल मुबारक के करीब इर्शाद फर्माया की रमजान का महीना आ गया है जो बड़ी बरकत वाला है | हक़ तआला शानुहु इस में तुम्हारी तरफ मुतवज्जह होते है और अपनी रहमते खास्सा नाजिल फर्माते है, खताओं को माफ़ फर्माते है, दुआ को कुबूल करते है, तुम्हारे तनाफ़ूस को देखते है और फ़रिश्तो से फ़ख़र करते है | पस अल्लाह को अपनी नेकी दिखलाओ | बद नसीब है वह शख्स, जो इस महीने में भी अल्लाह की रहमत से महरूम रह जावे | Reference:-   फजाईले आमाल

Ramzan Hadees 1 | रमजान हदीस १

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हजरत सलमान ( रजि ) कहते है की नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शाबान की आख़िर तारीख में हम लोगोंको वाज़ फ़रमाया की तुम्हारे ऊपर एक महीना आ रहा है, जो बहुत बड़ा महीना है,बहुत मुबारक महीना है | इस में एक रात है ( शबे कद्र ), जो हजारो महीनो से बढ़कर है | अल्लाह तआला ने उसके रोजे को फर्ज फ़रमाया और उसके रात के क़ियाम ( यानी तरावीह ) को सवाब की चीज बनाया है | जो शख्श इस महीनें में किसी नेकी के साथ अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करे, ऐसा है, जैसा की गैर रमजान में फर्ज अदा किया और जो शख्श इस महीने में किसी फर्ज को अदा करे, वह ऐसा है जैसा की गैर रमजान में सत्तर फर्ज अदा करे | यह महीना सब्र का है | और सब्र का बदला जन्नत है और यह महीना लोगो के साथ गमख्वारी करनेका है | इस महीने में मोमिन का रिज्क बढ़ा दिया जाता है | जो शख्श किसी किसी रोजेदार का रोजा इफ्तार कराए, उसके लिए गुनाहो के माफ़ होने और आग से खलासी का सबब होगा और रोजेदार की सवाब की मानिंद उसको सवाब मिलेगा, मगर इस रोजेदार के सवाब से कुछ कम नहीं किया जाएगा | सहाबा ( रजि ) ने अर्ज किया की या रसूलल्लाह ! हम में से हर शख्स तो इतनी वुसअत (कुशादगी ) नहीं

हजरत जिब्रइल अलैहिस्सलाम की बद्दुआ पर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आमीन

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कअब बिन उजारा कहते है की एक मर्तबा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इर्शाद फर्माया की मिम्बर के करीब हो जाओ | हम लोग हाजिर हो गए | जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मिम्बर के पहले दर्जे पर कदम मुबारक रखा तो फर्माया 'आमीन ' | जब दूसरे पर कदम रखा तो फिर फर्माया 'आमीन' | जब तीसरे पर कदम रखा तो फिर फर्माया 'आमीन' | जब आप ख़ुत्बे से फारिग हो कर निचे उतरे तो हम ने अर्ज किया की हम ने आज आपसे (मिम्बर पर चढते हुए ) एसी बात सुनी जो पहले कभी नहीं सुनी थी | आप ने इर्शाद फर्माया की उस वक्त जिब्रइल अलैहिस्सलाम मेरे सामने आये थे ( जब पहले दर्जे पर मैंने कदम रखा, तो ) उन्होंने कहा की हलाक हो जाये वह शख्स, जिसने रमजान का मुबारक महीना पाया, फिर भी उसकी मग्फिरत न हुई मैंने कहा आमीन, फिर जब मैं दूसरे दर्जे पर चढ़ा तो उन्होंने कहा, हलाक हो जाये वह शख्श जिसके सामने आपका जिक्र मुबारक हो और वह दुरुद न भेजे | मैंने कहा आमीन, जब मैं तीसरे दर्जे पर चढ़ा तो उन्होंने कहा हलक हो वह शख्श जिसके सामने उसके वालिदैन या उनमे से कोई एक बुढ़ापे को पावे और वे उसको जन्नत में दाखिल न कराए | मैंन

उम्मते मुहम्मदिया के लिए रमजान के बारे में पांच चीजें मख़सूस तौर पर दी गयी है

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 हजरत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नक़ल किया की मेरी उम्मत को रमजान शरीफ के बारे में पांच चीजे मख़सूस तौर पर दी गयी हे, जो पहेली उम्मत को नहीं मिली है - यह की उनके मुंह की बदबू अल्लाह के नजदीक मुश्क से ज्यादा पसंदीदा है - यह की इनके लिए दरिया की मछलियां तक दुआ करती है और इफतार के वक्त तक करती रहती है - जन्नत हर रोज उन के लिए सजायी जाती है, फिर हक़ तआला शानुहु फर्माते है की करीब है की मरे नेक बन्दे (दुनिया  की ) मशक्क़ते अपने ऊपर से फेंक कर तेरी तरफ आवें - इसमें सरकश शयातीन कैद कर दिए जाते है की वे रमजान में उन बुराईयों की तरफ नहीं पहुंच सकते जिनकी तरफ गैर रमजान में पहुंच सकते है- रमजान की आखिरी रात में रजोदारो के लिए मग्फ़िरत की जाती है | सहाबा (रजि ) ने अर्ज किया की यह शबे मग्फ़िरत, शबे कद्र है | फर्माया नहीं बल्कि दस्तूर है की मजदूर को काम ख़त्म होने के वक्त मजदूरी दे दी जाती है |  नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस हदीस पाक में पांच ख़ुसूसियतें इर्शाद फ़रमाई है, जो इस उम्मत के लिए हक़ तआला शानुहु की तरफ से मख़सूस इनाम हुई और पहेली उम्

सलातुत्तस्बीह नमाज के बारे में हदीस | Salatuttasbeeh Namaz ke bare me Hadees

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हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम ने एक मर्तबा अपने चचा हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से फर्माया, ए अब्बास ! ए मेरे चचा ! क्या में तुम्हें एक अतिया करूं ? एक बख्शिश एक चीज बताऊ ? तुम्हे दस चीजों का मालिक बनाऊ ? जब तुम उस काम को करोगे तो हक़ तआला शानुहु तुम्हारे सब गुनाह पहले और पिछले, पुराने और नये, गलती से किये हुए और जान-बूझकर किये हुए, छोटे और बड़े, छूप कर किये हुए और खुल्लमखुल्ला किये हुए सभी माफ़ फर्मा देंगे, वह काम यह हे की चार रकअत नफ़्ल (सालतुतस्बीह की नीयत बांध कर पढ़ो ) और हर रक्अत में जब अल्हम्दु और सुरः पढ़ चुको तो रूकूअ से पहले - " सुब्हानल्लाहि वल्हम्दु लिल्लाहि व लाइलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर " पंद्रह मर्तबा पढ़ो, फिर जब रूकूअ करो तो दस मर्तबा उसमे पढ़ो , फिर जब रूकूअ से खड़े हो तो दस मर्तबा पढ़ो,फिर सज्दा  करो तो दस मर्तबा उस में भी पढ़ो, फिर सज्दे से उठकर बैठो तो दस मर्तबा पढ़ो | फिर जब दूसरे सज्दे में जाओ तो दस मर्तबा इस में पढ़ो फिर जब दूसरे सज्दे से उठो तो ( दूसरी रकअत में ) खड़े होने से पहले बैठ कर दस मर्तबा पढ़ो | इन सब की मीजान पचहत्तर हुई | इसी तरह हर रकअत

08-04-2020 - अहादीसे जिक्र

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हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  का इर्शाद है कि हक़ तआला शानुहु  फर्माते है कि मै बन्दे के साथ वैसा ही मामला करता हू, जैसा कि वह मेरे साथ गुमान रखता है और जब वह मुझे याद करता है, तो में उसके साथ होता हु | पस अगर वह मुझे अपने दिल में याद करता है तो में भी उसको अपने दिल में याद करता हु और अगर वह मेरा मज्मे में जिक्र करता हे तो में उस मज्मे से बहेतर यानि फ़रिश्तो के मज्मो में (जो मासूम और बे-गुनाह  है) तज्क़िरा करता हु | और अगर बन्दा मेरी तरफ एक बालिश्त मुतवज्जह होता है, तो में एक हाथ उस की तरफ मुतवज्जह होता हु और अगर वह एक हाथ बढ़ता हे तो में दो हाथ उधर मुतवज्जह होता हु और अगर वह मेरी तरफ चल कर आता है तो में उसकी तरफ दौड़ कर आता हु |

07-04-2020 | नमाज के जरिए गुनाहो का झड़ना

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हजरत अबूजर रजियल्लाहु तआला अन्हु फर्माते है कि एक मर्तबा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सर्दी के मौसम में बाहर तशरीफ़ लाये और पत्ते दरख्तों पर से गिर रहे थे | आपने एक दरख़्त की टहनी हाथ में ली | उसके पत्ते और भी गिरने लगे | आपने फर्माया, ऐ  अबूजर ! मुसलमान बन्दा जब इख्लास से अल्लाह के लिए नमाज पढता है, तो उससे उसके गुनाह ऐसे ही गिरते है जैसे यह पत्ते दरख्त से गिर रहे है | फायदा :-    सर्दी के मौसम में दरख्तों के पत्ते ऐसी कसरत से गिरते है की बाज दरख्तों पर एक भी पत्ता नहीं रहता | नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम का पाक इर्शाद है की इख्लास से नमाज पढ़ने का असर भी यही है की उसके सारे गुनाह माफ़ हो जाते है, एक भी नहीं रहता, मगर एक बात काबिले लिहाज है | उलमा की तहक़ीक़ आयाते कुरानिया  और अहादीसे नबविया की वजह से यह है की नमाज वगैरह इबादत से सिर्फ गुनाह सगीरा माफ़ होते है | कबीरा गुनाह बगैर तौबा के माफ़ नहीं होते, इसलिए नमाज के साथ तौबा और इस्तगफार का एहतमाम भी करना चाहिए, इससे गाफिल न होना चाहिए, अल-बत्ता हक़ तआला शानुहु अपने फज्ल से किसी के कबीरा गुनाह भी माफ़ फरमा दे, तो दूसरी बात है |

07-04-2020 | इस्लाम की बुनियाद पांच चीजों पर है

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हजरत  अब्दुल्लाह  बिन उमर  रज़ियल्लाहु अन्हु नबी अकरम सल्लल्लाहु  अलैहि  व  सल्लम  का इर्शाद नकल करते है  कि इस्लाम की बुनियाद पांच स्तुनो पर है |  सबसे अव्वल " ला इला ह  इल्लल्लाहु मुहम्मद  दुर्रसूलुल्लाह " की गवाही देना यानी इस बात का  इकरार करना कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही और मुहम्मद  सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम  उसके बन्दे और रसूल है | उसके बाद नमाज का कायम करना, जकात अदा करना, हज करना, रमजानुल मुबारक के रोजे रखना |