Ramzan Hadees 8 | रमजान हदीस ८
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है की जो शख्श (क़सदन) बिला किसी शरई उज्र के एक दिन भी रमजान के रोजे को इफ्तार करदे गैर रमजान का रोजा चाहे तमाम उम्र के रोजे रखे इसका बदल नहीं हो सकता | फ - बाज उलमा का मजहब जिनमे हजरत अली कर्रमल्लाहु वज्हहू वगैर हजरात भी है, इस हदीस की बिना पर यह है की जिस ने रमजानुल मुबारक के रोजे को बिला वजह खो दिया, उसकी क़ज़ा हो ही नहीं सकती, चाहे उम्र भर रोजे रखता रहे | मगर जम्हूर फुकहा के नजदीक अगर रमजान का रोजा रखा ही नहीं तो एक रोजे के बदले एक रोजे से क़ज़ा हो जाएगी और अगर रोजा रख कर'तोड़ दिया तो क़ज़ा के एक रोजे के अलावा दो महीने के रोजे कफ़्फ़ारे के अदा करने से फर्ज जिम्मे से साकित हो जाता है, अलबत्ता वह बरकत और फजीलत जो रमजानुल मुबारक की है, हाथ नहीं आ सकती जो रमजान शरीफ में रोजा रखने से हासिल होती, यह सब कुछ इस हालत में है की बाद में क़ज़ा भी करे और अगर सिरे से रखे ही नहीं जैसा की इस जमाने के बाज नाफरमान लोगो की हालत है तो इस गुमराही का क्या पूछना ? रोजा अरकाने इस्लाम से एक रुक्न है | नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस्लाम की बुनियाद पांच ची