Ramzan Hadees 11 | रमजान हदीस ११
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इर्शाद है की शबे कद्र में हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम फ़रिश्तो की एक जमात के साथ आते है, और उस शख्स के लिए, जो खड़े या बैठे, अल्लाह का जिक्र कर रहा है और इबादत में मशगूल है, दुआ-ए-रहमत करते है और जब ईदुल फ़ित्र का दीन होता है, तो हक़ तआला जल्ल शानुहु अपने फ़रिश्तो के सामने बन्दों की इबादत पर फख्र फरमाते है ( इसलिए की उन्होंने आदमियों की पैदाइश पर एतराज किया था ) और दरयाफ्त फरमाते हे की ए फ़रिश्तो ! उस मजदूर का जो अपनी खिदमत पूरी-पूरी अदा करदे क्या बदला है ? वह अर्ज करते है की ऐ हमारे रब ! इसका बदल यही है की उसकी उजरत पूरी दे दी जाये | तो इर्शाद होता है की फरिश्तों | मेरे गुलामो ने और बांदियो ने मेरे फ़रीज़े को पूरा दिया, फिर दुआ के साथ चिल्लाते हुए ( ईदगाह की तरफ ) निकले है | मेरी इज्जत की कसम | मेरे जलाल की कसम, मेरी बख्शीश की कसम, मेरी बड़ी शान की कसम | मेरे बुलन्दी-ए-मर्तबे की कसम, में इन लोगो की दुआ जरूर क़ुबूल करूँगा | फिर उन लोगो को ख़िताब फरमा कर इर्शाद होता है की जाओ, तुम्हारे गुनाह माफ़ कर दिए है और तुम्हारी बुराइयों को नेकियों से बदल दिया है | पस यह लोग ईदगाह से ऐसे हाल में लौटते है की उनके गुनाह माह हो चुके होते है |
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